सैकड़ों करोड़ मनोरंजनकर वसूली का मामला दिल्ली उच्च न्यायालय होते हुए माननीय उच्चतम न्यायालय में लम्बित है, जिसकी ताजी तारीख 21 फरवरी 2022 थी, जिसमें दिल्ली सरकार को तीन सप्ताह का समय दिया गया है, इसका मतलब यह हुआ कि मार्च में अगली सुनवाई हो सकती है। मामला दिल्ली सरकार के राजस्व से सम्बंधित है और बहुत बड़ी राशि की वसूली का मामला है इसलिए सरकारी पक्ष इसे हल्के में नहीं लेगा, जबकि ‘डैस ला’ के अंर्तगत इसकी जिम्मेदारी एम.एस.ओ. की थी, अतः एम.एस.ओ. हर हाल में अपनी जान बचाने के लिए कोई कोरकसर नहीं छोड़ेंगे, क्योकि बामुश्किल उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय के द्वारा केबल टीवी ऑपरेटरों के गले में इसकी जिम्मेदारी डलवा दी थी, जिसके विरुद्ध ऑपरेटरों ने माननीय उच्चतम न्यायालय की शरण ली थी और दिल्ली उच्च न्यायालय के उनसे वसूली आदेश पर रोक लगाते हुए उन्हें राहत ही नहीं बल्कि जीवनदान दिया था। सालों से लम्बित मनोरंजन कर वूसली का मामला माननीय उच्चतम न्यायालय में अब सुनवाई पर आ गया है अतः न्यायालय की गाज़ किस पर पड़ेगी यह कहना बहुत कठिन है। मामला डिजीटल एड्रेसेबल सिस्टम (डैस) कानून लागू किए जाने से जुड़ा हुआ है जबकि उससे पूर्व सब सामान्य था। केबल टीवी ऑपरेटर स्वयं अपना मनोरंजन कर दिल्ली सरकार के राजस्व विभाग में जमा कर रहे थे।
केबल टेलिविजन नैटवर्क कानून 1995 में संशोधन कर पहले कंडीशनल एक्सेस सिस्टम (कैस) और बाद में कैस को रद्द कर डिजीटल एड्रेसेबल सिस्टम (डैस) कानून लाया गया। सरकार ने सख्ती के साथ 1 नवम्बर 2012 को डैस का प्रथम चरण लागू करवा दिया। डैस लागू किए जाने पर केबल टीवी का पूर्ण नियंत्रण एम.एस.ओ. के आधीन हो गया। केबल टीवी ऑपरेटर उपभोक्ताओं को केबल टीवी सेवा उपलब्ध करवाने के लिए पूर्णतया एम.एस.ओ. पर ही निर्भर हो गए। उपभोक्ताओं को केबल टीवी सेवा उपलब्ध करवाने के लिए सैट्टॉप बाक्स की अनिवार्यता हो गई, बिना सैट्टॉप बॉक्स के किसी भी टैलिविजन को सिग्नल्स उपलब्ध नहीं करवाए जा सकते थे। प्रत्येक सैट्टॉप बॉक्स के साथ जुड़ने वाले टीवी (उपभोक्ता) की पूर्ण जानकारी एम.एस.ओ. को दी जानी अनिवार्य हो गई, बिना उपभोक्ता की जानकारी लिए सैट्टॉप बॉक्स कार्य नहीं कर सकता। उपभोक्ता एवं उपभोक्ता की मांगनुसार उसे उपलब्ध करवाए जाने वाले चैनलों की भी पूर्ण जानकारी एम.एस.ओ. को दी जानी आवश्यक हो गई, इसके बिना सैट्टॉप बाक्स को चालू नहीं किया जा सकता। केबल टीवी ऑपरेटर उपभोक्ताओं से जानकारी लेकर एम.एस.ओ. को उपलब्ध करवाते, एमएसओ वह जानकारी अपने सिस्टम में लेकर उपभोक्ताओं के परिचय व उनकी मांगनुसार सेवा उपलब्ध करवाने के लिए सैट्टाप बाक्स को एक्टिवेट करते है। सैट्टॉप बाक्स के द्वारा उपभोक्ताओं को एक बार नियंत्राण में लिए जाने के बाद उपभोक्ता के लिए किसी अन्य से सेवा प्राप्त करना सरल नहीं रह गया था, अतः अधिक से अधिक सैट्टॉप बॉक्स से उपभोक्ताओं को जोड़ने के लिए चली महाप्रतिस्पर्घा के दरमियान सभी एम.एस.ओ. का एक ही लक्ष्य रहा कि किसी भी तरीके से ज्यादा से ज्यादा सैट्टॉप बॉक्स लगा दिए जाएँ। एमएसओ ने सैट्टॉप बॉक्स लगवाने के लिए सब्सक्राइबर एप्लिकेशन फार्म भी उपभोक्ताओं से भरवाना जरूरी नहीं समझा। सभी को ज्यादा से ज्यादा उपभोक्ताओं को सैटटॉप बॉक्स से जोड़ लेने की प्राथमिकता रही, इसके लिए केबल टीवी ऑपरेटरों से बिना राशि लिए सेवा दी जाती रहीं। डिजीटल एड्रेसिबल सिस्टम (डैस) कानून के अंर्तगत स्पष्ट किया गया कि 31 मार्च 2013 तक मनोरंजन कर का भुगतान केबल टीवी ऑपरेटर करेंगे एवं उसके बाद 01 अप्रैल 2013 से टैक्स जमा करने की जिम्मेदारी एम.एस.ओ. की होगी। सिटी केबल द्वारा सब्सक्राइबर एप्लिकेशन फार्म भी प्रत्येक सैट्टॉप बॉक्स के लिए भरवाए गए एवं डैस लागू होने पर 01 नवम्बर 2012 से सेवा शुल्क भी वसूला गया। 01 अप्रैल 2013 से 20 रुपए मनोरंजन कर की वसूली भी सिटी केबल ने ऑपरेटरों से की जबकि अन्य एम.एस.ओ. ने उपभोक्ताओं की संख्या बढ़ाने पर ही जोर दिया। उन्होने मासिक सेवा शुल्क ना लेकर केवल सैट्टॉप बॉक्स लगवाने का ही काम किया व ना ही मनोरंजन कर जमा करवाया।
नवम्बर 2012 से मार्च 2013 तक तो गली मोहल्लों में नुक्कड़ों पर कनोपी लगा कर बैठे केबल टीवी सर्विस प्रोवाइडर्स एम.एस.ओ. सहित डीटीएच ऑपरेटरों के बीच खासी प्रतिस्पर्धा चली, एक से बढ़कर एक लुभावन नई-नई स्कीम उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए चलाई गई। इस प्रकार जिससे जितना बन सका अधिकाधिक उपभोक्तओं को अपनी सर्विसेस से जोड़ा गया, लेकिन मनोरंजन कर जमा करवाने के लिए लापरवाह रहे, जबकि डीटीएच ऑपरेटर एवं सिटी केबल डैस कानून के प्रति भी सचेत रहे। दिल्ली सरकार का राजस्व विभाग आरम्भ में तो एम.एस.ओ. की प्रतीक्षा ही करता रहा जबकि केबल टीवी ऑपरेटरों को 01 अप्रैल 2013 से मनोरंजन कर राशि का भुगतान राजस्वविभाग को जमा करवाने की आवश्यक्ता नहीं थी, ऑपरेटरों से वसूली कर मनोरंजन कर राशि को राजस्व विभाग में जमा करवाने की जिम्मेदारी एम.एस.ओ. की थी। अतः एम.एस.ओ. जितनी भी मासिक शुल्क के रूप में राशि केबल टीवी ऑपरेटरों से वसूली कर रहे थे उसमें से उन्हें मनोरंजन कर भुगतान करना चाहिए था, लेकिन जब एमएसओ द्वारा स्वयं मनोरंजन कर जमा नहीं करवाया गया तब राजस्व विभाग द्वारा उनसे कर वसूली के लिए दबाव बनाया गया, रेड मारी गई क्योंकि लगातार कर राशि में बढ़ोतरी होती गई और एम.एस.ओ. कर भुगतान से बचाव के रास्ते ढूंढ़ने लगे। आखिरकार कर वसूली का विवाद सन् 2014 में दिल्ली उच्चन्यायालय में पहुंच गया। न्यायालय में एम.एस.ओ. को अप्रैल 2013 से जून 2015 तक का कर राजस्व विभाग में जमा करवाने को कहा गया अतः सिटी डैन हाथवे एम.एस.ओ. द्वारा मनोरंजन कर राशि दिल्ली राजस्व विभाग में जमा करवा दी व अदालती सुनवाई जारी रही जबकि 20 जून 2015 को दिल्ली सरकार ने मनोरंजन कर की दर रुपए 20/- से बढ़ाकर सीधे रुपए 40/- कर दी।
सिटी केबल ने केबल टीवी ऑपरेटरों से मनोरंजन कर वसूल कर सरकारी खजाने में जमा करवाना जारी रखा लेकिन अन्य एम.एस.ओ. ने आंखे मूंद ली। सरकारी राजस्व से जुड़े इस मामले में 9 मार्च 2017 को एक नया मोड़ आ गया जब दिल्ली उच्च न्यायालय में कर वसूली के लिए केबल टीवी ऑपरेटरों से वसूला जाए का आदेश दे दिया। एम.एस.ओ. दिल्ली सरकार ने जो भी खिचड़ी पकाई लेकिन जब सैकड़ों करोड़ कर बकाया की वसूली की तलवार केबल टीवी ऑपरेटरों की गर्दन पर लटकी तब ऑपरेटरों की सांसे रूक गई। उच्च न्यायालय के आदेशानुसार दिल्ली सरकार राजस्वविभाग ने केबल टीवी ऑपरेटरों से कर वसूली कार्यावाही मई 2017 में शुरू की, तभी जुलाई 2017 में केबल टीवी ऑपरेटरों ने माननीय उच्चतम न्यायालय में गुहार लगाई। केबल टीवी ऑपरेटरों का पक्ष सुने बिना दिल्ली उच्च न्यायालय ने एमएसओं की ओर बकाया मनोरंजन कर के सैकड़ों करोड़ राशि की वसूली के लिए राजस्व विभाग को केबल ऑपरेटरों से वसूल करने का आदेश दे दिया जिस पर माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा एक्स पार्टी मामले पर अगस्त 2017 में रोक लगा कर केबल टीवी ऑपरेटरों को राहत दे दी।
मामला माननीय उच्चतम न्यायालय में लम्बित था जो कि अब सुनवाई पर आ गया है, अभी हाल ही में बीती 21 फरवरी 2022 को न्यायालय ने दिल्ली सरकार को अपना पक्ष रखने के लिए 3 सप्ताह का समय दिया है। दिल्ली सरकार अपना पक्ष क्या रखती है यह देखने वाली बात होगी, जबकि एम.एस.ओ. हर हाल में चाहेंगे कि उच्च न्यायालय के फैसले में कोई बदलाव ना हो। इसके लिए एम.एस.ओ. बड़े से बड़े वकील न्यायालय में खड़े कर सकते हैं लेकिन केबल टीवी ऑपरेटरों के लिए यह बहुत बड़ी परीक्षा की घड़ी है, वह अलग-अलग घड़ों में बटे हैं लेकिन यदि माननीय उच्चतम न्यायालय से ऑपरेटरों के लिए कुछ बुरी खबर आई तब ऑपरेटरों के अस्तित्व पर ही प्रश्न चिह्न लग जाएगें। अतः मामला बहुत गम्भीर है और माननीय उच्चतम न्यायालय में सुनवाई पर है। हालांकि दिल्ली में केबल टीवी ऑपरेटरों की संख्या कम नहीं हैं, वह थोड़ा-थोड़ा फंड भी निकालें तो न्यायालय में अपना पक्ष बहुत मजबूती से रख सकते हैं। इसके लिए फंडस निकालने के लिए केबल ऑपरेटर्स को कोई विरोध भी नहीं होगा लेकिन समस्या यह है कि किस पर भरोसा करें? इसके लिए शीघ्र ही ऑपरेंटरों को एक आम मीटिंग कर एक कमेटी का गठन कर पूर्ण विश्वास के साथ सुप्रीम कोर्ट की जिम्मेदारी देनी चाहिए। बिना किसी किन्तु-परन्तु के उन्हें तत्काल ठोस निर्णय ले लेना चाहिए अन्यथा भविष्य बिल्कुल अंधकारमय भी हो सकता है और उसके लिए कोई ओर नहीं ऑपरेटर स्वयं जिम्मेदार होंगे।